मेरी परिकल्पना की दुनिया में आपका स्वागत है. यदि मेरी कल्पना में कोई सच दिखता है तो इसे मात्र एक सयोंग ना माना जाये...........

बुधवार, अगस्त 15, 2012

देश में तुम हो इसका अहसास होने दो

I love India
रगों में बहते इस खून को ललकारने का समय दो ,
आंधी तुफानो में रहकर ,
दूर  भगाओ अब के इन फिरंगियों को ,
अपने आप में इस आग की ज्वाला को जलने दो ,
देश में तुम हो इसका अहसास होने दो ।

रोती बिलखती आवाज़ से सने कानों को रुकने न दो ,
उन्ही आसुओ से सींच आंगन अपना महका दो ,
पल में जाती पल में बढती उस क्रांति की तरंग को बुझने न दो 
देखो समय अपना है, देश हमारा है, इसे य़ू जाने न दो 
देश में तुम हो उसका अहसास होने दो 

द्रोही के मौके को दबोचना सीखो 
बलिदान की लहर में बहना सीखो 
क्रोध का दीपक एक कोने में जलने दो 
राह में आती विपदाओं में हँसना सीखो 
ऊँगली छोड़ देश के लिए चलना सीखो 
देश में तूम हो इसका अहसास होने दो  

गौरव कुलकर्णी 



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रविवार, नवंबर 06, 2011

याद-2

खोई खोई निगाहें धुंधली सी

प्यार का इशारा दे रही

सागर से पूछो, पलकों में बहती हुई

शर्माना तुम्हारा, छुपती मुस्कान भी

जवाब देती हुई इठलाती सी

पल भर का तेज़ देती हुई

आखिर क्यों मुझसे दूर चली गयी .......

गौरव कुलकर्णी 

याद -1

तुम्हे बाहों में भरना मेरी याद बन गयी है

तुम्हारी मुस्कराहट की आवाज़े मेरी ताकत अब क्यों नहीं है

जाने क्यों ऐसा लगता है मैं फिर से खुश होऊंगा 

बालो में तुम्हारे फिर फूल लगाऊंगा 

तुम्हारी निगाहों को आखिर कब मैं अपने में उतारूंगा,

दिल में बसी हुई तुम, कब सामने आओगी

नाराज़ हो, तोडा था मैंने तुम्हारा दिल, मैंने अब माना है

वापस आ जाओ मेरे पास, तुम अब नहीं रोओगी ||

गौरव कुलकर्णी  याद -1

शनिवार, अक्तूबर 01, 2011

ठंडी हवाएं

घेर लिया हैं मुझे उन चंचल ठंडी हवाओं ने,
जैसे कुछ याद दिलाना चाहती हो,
ठंडी सी, चुभती हुई शायद कुछ कहना चाहती हो,
इन हवाओं से मुझे उस धुप की याद आती है 
जिनसें मैं बचने के लिए इन्ही हवाओं के साये में सोता था,
पर आज तो कुछ और ही बात हैं,
जाने क्यों मेरे बालो में गुदगुदी मचा रही हैं,
मुझे ठिठुरने में क्यों मजबूर कर रही हैं
क्या हमेशा मुझे इन्ही में ही अपनी यादे बनानी होगी,
मेरे सीने की गर्म हवाओं से कितनी दुश्मनी निभा रही हैं,
मेरे कानो में इसकी आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही हैं,
शायद यही रुकने का कह रही हो,
पर यह मुझे झल्लाहट के सिवा कुछ ना दे रही हैं
आखिर मुझे यह क्यों सता रही हैं,
 रात के अँधेरे में, चाँद के उजाले में आखिर इससे मैं क्यों उलझा हु |
सोच के छोटा सा ख्याल मन में आया
जब दिन में मैं अवलेहना करता हु मैं इनकी पर्दों से,
खिडकियों से इन्हें मैं डराता हु,
सोच के ये मैं वही बैठ गया 
और उन ठंडी हवाओं को मैंने सहेज कर रख लिया |

गौरव कुलकर्णी 2sept2011

सोमवार, सितंबर 26, 2011

उसका भीगा हुआ चेहरा, गालो पर बूंद,

उसका भीगा हुआ चेहरा, गालो पर बूंद,
जैसे गुलाब की पंखुडियो पर ओस 
बांहों में भर उसे मैंने कहा
नज़रे ना चुराओ मुझसे, 
यह बुँदे आग को बुझा नहीं रही थी,
शौक़ीन थी वो बारिश की,
अक्सर तकलीफ देती थी,
हर साल बारिश उसकी याद साथ ले आती 
उसकी नजरो को उठाकर मिलाना चाहा 
वो हस पड़ी, मैं चाहता था उस ओस को चूमना 
काटे भी लग सकते थे, हैरान नहीं होना चाहता,
पर मौसम ने साथ नहीं दिया, वो चली गयी |

रविवार, सितंबर 25, 2011

अहसानों से लदे हुए उस फूल को
जब याद दिलाते हैं उसकी खुशबू
सीना तान के खिलखिलाकर
समझता हैं अपने आपको को राजा
पौधे (पेड़) को समझता जब वो अपना दास
तभी माली यमदूत बन कर उसे दिखता
काट ले जाता उसका घमंड अपने साथ | 

शनिवार, सितंबर 24, 2011

समंदर की लहरों से निकलती हैं तरंगे,
तरंगो से निकलती हैं बूंदे,
बूंदों से निकलता हैं एहसास,
एहसास से निकलती हैं एक नई प्यास,
प्यास से निकालता हैं एक असंतोष,
असंतोष से निकलता है अधूरापन
अधूरेपन से निकलती एक तमन्ना 
तमन्ना से निकलती एक नई सोच,
सोच से निकलती हैं आशा
आशा से निकलती हैं किरण
किरणों में समाता हैं सूरज पर बसता हैं समंदर |

7march2011

शुक्रवार, सितंबर 23, 2011

खो भी जाओ तो यादो को जलाओगे कैसे
तमन्ना में समां के तुम भूला दिए जाओगे कैसे
मुश्किल हैं अलग राह बनाना 
पर मुश्किल कहा मुझे अपना बना रही हैं तुम्हारे जैसे
भीड़ में गुम हो जाऊ तो कह देना गलती 
पर उसी भीड़ से तुम्हे ना देखू  तो गुस्ताखी 
मजबूर कंधो पर क्या क्या रखु रोते-हँसते |

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चलती हुई कश्ती पर भी तुम्हारा नाम लिख दिया था
तुमने भी हस कर कश्ती को सहारा दिया
हदे अभी पार भी नहीं हो पाई थी
कि तुम्हे देखने वाले उसी भौचक मालिक ने देख लिया 

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पाना चाहता था मैं उसे 
डर था मन में इस कदर
की बगैर पाए होश रहेगा की नहीं 
जैसे होठ कह पड़े 
बिना आँख झुकाये उसे देख कर 
जिनकी बांहों की याद समझने में 
मेरे सालो बीत गए ||

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उन पलों में जब मैं ढूंढता था ख़ुशी
याद बनते देख कभी कभी आ जाती थी हँसी
उन भयानक मंजरो से झुझा हुआ मैं 
पता नहीं कब तक लड़ता रहूँगा 
उन्हें भुला पाना इतना आसान होता तो
यादो का कचूम्मर बना देता 
पल पल सिसकिया लेते  आखिर मैंने
पा ही लिया खुशियों का खजाना
भले ही थोड़े समय, पर भरोसा टूटने से बचा लिया ||

शनिवार, सितंबर 17, 2011

कुछ सोच के उन यादो में,
जब मैं खोया, पता था
कश्तियो का यू फ़ब्तिया कसना,
बेहोश थी सारी महफ़िले, मायूस था समंदर,
उठा के उसने लहरों से मेरे आंसू पोछ दिए |


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राहों में पिघली हुई यादो का मलबा,
जब यू फिसला मेरे हाथो से,
क्या पता था उसे वो छूने वाली हैं,
ढेर में निकली किरण ने जान बचाई,
उस लौ में कब तक तपता,
आखिर जल ही गया मैं और,
मिल गया उस मलबे के ढेर में |


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मुनासिब समझे वो मुझे बेहोशी में भी,
दिखाऊ उन्हें सितारे, बेकार की तन्हाई बर्दाश्त नहीं होती,
जगा के सुलाना पसंद नहीं तो कैसे
आखिर कैसे करू मैं बात पक्की,
अंगारों पर चलने वाले पानी की ठंडक को क्या जाने |


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झूठी हसी भी खुश कर सकती हैं ,
सोचने पर मजबूर कर सकती हैं
सुला सकती हैं, देखो तो ज़रा ,
बांध सकती हैं, बहा सकती हैं,
डूबा सकती हैं, रोक सकती हैं
मेहनत करवा सकती हैं
सच-मार  पड़ने पर रुला भी सकती हैं |


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ख्वाबो में बसी तस्वीर को जब मैंने नज़दीक पाया,
कहना चाहता था मैं कुछ उससे,
उसकी आँखों ने मुझे बांध रखा था,
बालो ने ज़कड़ा हुआ था
कहकर मैं तो दूर ले जाना चाहता था उसे,
कम्बखत यहा भी मौसी आ गयी और
जगा दिया मुझे |

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पहाडो पर बैठी हुई बर्फ को जब मैंने यू देखा,
सफ़ेद रजाई में सुलगती आग को पाया,
पाकर मैं होश में आया
तब अहसास हुआ उस जंगल का
जहा उसने मुझे उसके दुसरे रूप को दिखाया


--------------------------------------- गौरव कुलकर्णी